
देहरादून। पूरे हिमालय क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों में तापमान में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। इसे गंभीरता से लेकर विकास के कार्यों को करना होगा। उत्तराखंड में भी तेजी से बदलती जलवायु परिस्थितियां इसके पारिस्थिकीय तंत्र को प्रभावित कर रही है। हिमालय में तेजी से पिघलते ग्लेशियर बढते तापमान का एक बड़ा कारण है।
राजपुर रोड स्थित एक होटल मे क्लाइमेट ट्रेंड्स की जलवायु परिवर्तन को लेकर आयोजित कार्यशाला में विशेषज्ञों ने एक स्वर में बदलते जलवायु परिवर्तन और तापमान में हो रही वृद्धि को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि तेजी से बदल रही जलवायु परिस्थितियों के कारण पारिस्थिकीय तंत्र भी प्रभावित हो रहा है। तापमान, बारिश के बदलते पैटर्न, सूखती नदियां, बाढ़, भूस्खलन और जंगलों की आग की घटनाएँ हो रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी विकास योजनाओं के केंद्र में जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को शामिल करना ज़रूरी है। उत्तराखंड को निर्माण, मलबा निस्तारण और जल निकासी के नियमों को सख़्ती से लागू करने की आवश्यकता है। राज्य को अपने पहाड़ों और कस्बों की वहन क्षमता पर गहन अध्ययन और इसके पारिस्थितिकी तंत्र पर उच्च गुणवत्ता वाले डेटा की आवश्यकता है।
राज्य भले ही सामान्य वर्षा की श्रेणी में आ गया हो लेकिन अगर हम आंकड़ों पर नज़र डालेंगे तो सच्चाई थोड़ी अलग है। आंकड़ों के मुताबिक़ ज़्यादातर बारिश की भरपाई ‘अधिक’ या ‘अत्यधिक’ बारिश के कारण हुई है। मानसून में मौसम की चरम घटनायें हावी रही हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संयुक्त सचिव कुणाल सत्यार्थी ने कहा कि उत्तराखंड में लगातार जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली घटनाओं से जनजीवन पर भी असर पड़ रहा है। हालांकि उन्होंने जोशीमको अनियोजित शहरी विकास के उदाहरण के रूप में लिया। इसे जलवायु परिवर्तन के कारण नहीं माना। उन्होंने कहा कि जहां बारिश नहीं होती थी, वहां बारिश हो रही है। कुछ स्थानों पर अत्याधिक बारिश से बादल फटने जैसी घटनाएं हो रही हैं। इसके कारण पहाड़ों में बाढ़ आ रही है। हिमपात का पैटर्न भी लगातार बदल रहा है।
भारत में डेंगू के मानचित्र में देहरादून पूरी तरह से लाल दिखाई दे रहा है। इसकी वजह पूरा शहर आर्द्र भूमि के आसपास विकसित हुआ है। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसके पटनायक ने कहा कि पहाड़ों में अनियंत्रित विकास और प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव के कारण भी जलवायु पर असर पड़ रहा है। उन्होंने पालिथीन के कैरिंग बैग के विकल्प पर भी काम करने पर जोर दिया। जब तक इसका विकल्प नहीं देंगे, पालिथीन को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके प्रति लोग स्वयं जागरूक हों तो तभी इस समस्या का हल हो सकता है।
अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक कपिल जोशी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चुनौती है। 23 सालों में उत्तराखंड में विकास की गतिविधियों के लिए 4500 से ज्यादा भूमि हस्तांतरण के मामले आए हैं। मौसम केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह ने मौसम में आए बदलावों पर विचार रखे।
एचओडी हाईड्रोलाजी आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन उत्कृष्टता केंद्र आईआईटी रुड़की डा. सुमित सैन ने कहा कि उत्तराखंड में जंगलों की आग बढ़ रही है। लोगों का पलायन बढ रहा है। यूकास्ट की वैज्ञानिक डा. पूनम गुप्ता ने कहा कि तीर्थयात्रा के लिए मार्ग विकसित करते समय पुरानी परंपराओं पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही पहाड़ों की कैरिंग कैपेसिटी और ड्रेनेज सिस्टम के हिसाब से निर्माण कार्य किए जाने चाहिए। गढ़वाल विवि के प्रोफेसर डा. एसपी सती ने भी जलवायु परिवर्तन के कारकों पर विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि पिछले सालों में जिस तेजी से तापमान बढ़ा हैष। उससे अगले दस सालों में 0.5 डिग्री तापमान में वृद्धि हो जाएगी।