मोहिंद्र प्रताप सिंह राणा
शिमला। पिछले कुछ दिनों समाचार पत्रों और एक वीडियो में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के वंश व सियासत के वारिस विक्रमादित्य सिंह का एक वाक्य खूब प्रचारित हो रहा है। वाक्य है कि “होली लोज को डिसलोज करने वाला कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ है”।
विक्रमादित्य की यह चुनौती भाजपा को, नेताप्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को जिन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में इस संदर्भ में कुछ कहा, कांग्रेस को, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को जिनका नाम लेकर नेता प्रतिपक्ष ने इस संदर्भ बात की या फिर हिमाचल वासियों को, इसकी विवेचना बाद में करते हैं।
पहले विक्रमादित्य की भाषा को लेकर उनके व स्वर्गीय वीरभद्र सिंह समर्थकों व आम जनों की प्रतिक्रिया पर चर्चा करते हैं। उनके समर्थक मानते हैं कि ऐसी गैर संस्कारी भाषा से हम तो दुखी हैं ही, स्वयं वीरभद्र सिंह की पुण्य आत्मा भी विचलित हो गई होगी। उनका मानना है कि स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की सियासी भाषा इतनी सहज, सरल, संजीदा व प्रभावशाली थी कि उनके एक शब्द या वाक्य से ही प्रदेश की सियासी हवाएं रुख बदल देती थीं।
एक समर्थक ने वीरभद्र सिंह के ठियोग विधानसभा क्षेत्र में दिए चुनावी भाषण की एक पंक्ति का जिक्र किया। वह कहते हैं कि स्वर्गीय वीरभद्र सिंह ने अपने अंदाज में कहा कि अगर “कमल हाथ से नहीं टूट रहा है तो धराटी से काट दो”। समर्थक आगे कहता है कि इन 12 शब्दों ने समूचे चुनाव का खेल पलट कर रख दिया था।
सियासतदां की भाषा अक्खड़पन या अहंकार से भारी नहीं होती है बल्कि सहज, सरल व संजीदा लेकिन सांघातिक होती है। विक्रमादित्य सिंह को यह बात समझ लेना चाहिए अगर उन्हें वीरभद्र सिंह की सियासत का वारिस बनना है तो संयमित होकर बयान देना होगा।
अब प्रश्न है कि यह चुनौती किसको दी गई है क्या नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर को जिन्होंने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा होली लॉज को डिस्क्लोज करने की बात कही ? यद्यपि विक्रमादित्य ने नाम जयराम ठाकुर का ही लिया है परंतु हकीकत में डिस्क्लोज करने के सीन में तो जयराम कहीं हैं ही नहीं वह तो मुख्यमंत्री सुक्खू द्वारा होली लॉज को डिस्क्लोज करने की बात कर रहे हैं।
अगर विक्रमादित्य सिंह नेता प्रतिपक्ष के सारे में उकसावे आ कर अपने नेता, मुख्य मंत्री को चुनौती दे रहे हैं तो उन्होंने अपने पिता स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की सियासत को रत्ती भर भी आत्मसात नहीं किया है। जगजाहिर है कि स्वर्गीय वीरभद्र सिंह और वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का दशकों छत्तीस का आंकड़ा रहा। उन्होंने कभी इस तरह गैर जिम्मेदार शब्दों का प्रयोग नहीं किया । इसी बात से वीरभद्र सिंह समर्थक आहत हैं ।
अगर उन्होंने विपक्ष के नेता के सियासी उकसावे में आकर प्रदेश की 70-72 लाख जनता को ही चुनौती दे डाली है, तो सनद रहे, प्रजातंत्र में तो “जानता ही जनार्दन होती है” और जनार्दन को चुनौती देना राजनीतिक आत्महत्या करना है। विक्रमादित्य सिंह अगर चाहें तो आने वाले दिनों में राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए यह जरूर स्पष्ट कर सकते हैं कि उनकी चुनौती किसको है ?