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गढ़वाल रामलीला परिषद के बैनर तले शुरू हुआ देहरादून में पर्वतीय रामलीला का मंचन

50 के दशक तक देहरादून में एक ही रामलीला का होता था मंचन

देहरादून। गढ़वाली समाज की भावनाओं को ठेस पहुंची तो देहरादून में दूसरी गढ़वाली रामलीला का मंचन शुरू किया गया। यह बात वर्ष 1950 के दशक की है। पहले देहरादून में एक ही रामलीला का मंचन हुआ करता था। इसमें सर्व समाज के लोगों की भागीदारी रहती थी। लेकिन एक दिन रामलीला मंचन के दौरान एक घटना घटी, जिसने गढ़वाली समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। इसके बाद अखिल गढ़वाल सभा ने दून के चुक्खूवाला मैदान में रामलीला का मंचन शुरू किया।

मुझे याद है कि हम उस समय ईसी रोड में बिजली बोर्ड के आवास में रहते थे। वर्ष 1970 के दौर में भी अनवरत रूप से चुक्खूवाला में रामलीला का मंचन होता रहा। इस रामलीला को देखने के लिए उस दौर में भी शहर के दूर-दूर के हिस्सों से लोग आते थे। रामलीला का मंचन देर रात तक होता था, लिहाजा दूर से आने वाले लोग सुबह सवेरे ही अपने घरों को वापस लौटते थे। उस समय लोग रामलीला देखने के लिए शाम होते ही चुक्खूवाला के लिए चल पड़ते थे। रामलीला देखने के लिए मैदान 8 बजे ही भर जाता था। लोग अपनी जगह निश्चित कर लेते थे। सर्दियों की कड़कड़ाती ठंड में रामलीला को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। उस समय के राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, हनुमान के पात्रों को लोग भगवान की तरह पूजते थे।

बात करें गढ़वाली सभा की तो देहरादून में गढ़वाल मूल के लोगों का पहला संगठन 19 अगस्त 1901 को ‘गढ़वाली यूनियन’ के नाम से अस्तित्व में आया। इसे ‘गढ़वाल हित प्रचारिणी सभा’ के नाम से भी जाना जाता था। तारादत्त गैरोला, विश्वंभर दत्त चंदोला जैसे लोगों ने इसकी स्थापना की। इसी बुनियाद पर 10 फरवरी 1952 को देहरादून में अखिल गढ़वाल सभा की स्थापना हुई। जिसके संस्थापक अध्यक्ष बने शिव सिंह गुसाईं और उर्बिदत्त उपाध्याय महासचिव चुने गए। गढ़वाली यूनियन के संस्थापक विश्वंभर दत्त चंदोला भी अखिल गढ़वाल सभा के संस्थापकों में शामिल रहे, जो बाद में इसके अध्यक्ष भी बने। गढ़वाली यूनियन और बाद में अखिल गढ़वाल सभा का उद्देश्य समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए जागरूकता का प्रसार करना और अपने समाज को एकजुट करना था। अखिल गढ़वाल सभा ने ही 1955 में देहरादून नगर की दूसरी और पर्वतीय समाज की पहली रामलीला की शुरूआत की।

उर्बिदत्त के संकल्प से ऐसे हुई चुक्खुवाला की प्रसिद्ध रामलीला की शुरूआत
अखिल गढ़वाल सभा के रामलीला आयोजन से बतौर सचिव और बाद में अध्यक्ष जुड़े रहे धीरज सिंह नेगी रामलीला की शुरूआत के पीछे की जो कहानी बताते हैं, वह कहीं न कहीं उस दौर में अपने ‘प्रतीकों’ के प्रति आदर और आत्मसम्मान की भावना से जुड़ी है। बकौल नेगी, बात संभवतः 1954 की है। उर्बिदत्त उपाध्याय उस समय गढ़वाल सभा के महासचिव होते थे। तब नगर में होने वाले रामलीला आयोजन में वे बतौर स्वयंसेवक सहयोग करते थे।

एक दिन सीता स्वयंवर का मंचन हो रहा था। अलग-अलग देशों-रियासतों के राजा दर्शाए गए थे। इन्हीं में गढ़ नरेश को भी स्वयंवर में भाग लेने आया दिखाया गया। धनुष तोड़ने के तरह-तरह के राजाओं के किरदार यूं तो दर्शकों का मनोरंजन के लिए दर्शाए जाते थे। किंतु, इनमें गढ़ नरेश को काफी अमर्यादित ढंग से दीनहीन और हास्यास्पद दर्शाया गया। यह दृश्य उर्बिदत्त उपाध्याय को चुभ गया। गढ़वाली समाज के अन्य प्रबुद्ध लोगों की भावनाएं भी आहत हुईं। उर्बिदत्त व कुछ लोगों ने विरोध जताया। किसी तरह मामला शांत कराया गया। उसी समय उर्बिदत्त उपाध्याय ने उसी समय यह संकल्प ले लिया कि अब वे अलग से रामलीला का मंचन कराएंगे। धीरज नेगी बताते हैं कि गढ़वाल सभा के महासचिव उर्बिदत्त उपाध्याय ने अगले ही सीजन यानी, साल-1955 में रामलीला मंचन के लिए तैयारियां कर ली।  विश्वंभर दत्त चंदोला उस समय सभा के अध्यक्ष थे। लेकिन वे इस बात पर सहमत नहीं हुए कि गढ़वाल सभा के बैनरतले रामलीला मंचन हो। आखिरकार इसका भी रास्ता निकाला गया। गढ़वाल सभा ने आयोजन के लिए ‘गढ़वाल रामलीला परिषद’ नाम से अलग इकाई (भ्रातृ संस्था) बनाई। भोलादत्त सकलानी (बाद में नगर पालिका के अध्यक्ष और नगर विधायक भी रहे) इस परिषद के अध्यक्ष और गढ़वाल सभा के महासचिव उर्बिदत्त उपाध्याय ही परिषद के महासचिव भी बने।

आज के पीएंडटी कॉलोनी है, उस मैदान में होती थी रामलीला

गढ़वाल सभा की रामलीला परिषद ने पहला मंचन चुक्खुवाला में चक्रधर बहुगुणा के ‘बहुगुणा कंपाउंड’ में किया। यह काफी मैदान था। दो-तीन साल यहीं रामलीला का मंचन किया गया। बाद में 1960 के आसपास इस बहुगुणा कंपाउंड में ही पीएंडटी कॉलोनी का निर्माण शुरू हो गया। धीरज सिंह नेगी बताते हैं कि पोस्ट एंड टेलीग्रॉफ कॉलोनी का निर्माण शुरू होने के बाद वहीं नजदीक स्थित श्रीगुरू नानक बालक पब्लिक इंटर कॉलेज के कंपाउंड में रामलीला का मंचन शुरू हो गया। वहां 1983 तक मंचन हुआ और पूरे देहरादून में यह चुक्खुवाला की रामलीला के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

वर्ष 1973-74 में ठाकुर वीर सिंह अध्यक्ष बने और उन्होंने गढ़वाल रामलीला परिषद को अलग से रजिस्टर्ड करवा दिया। इसके बाद से गढ़वाल सभा के लोग तो इससे जुड़े रहे, लेकिन मंचन विशुद्ध रूप से परिषद के बैनर तले ही होने लगा।  कुछ वर्ष इस रामलीला का मंचन डोभालवाला स्थित स्कूल में और फिर नेशविला रोड स्थित एक छोटे मैदान में भी हुआ। बीच में एक साल इस रामलीला का मंचन डिस्पेंसरी रोड स्थित गांधी इंटर कॉलेज में भी हुआ। दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक ’रामायण’ ने रामलीलाओं के मंचन को व्यापक तौर पर प्रभावित किया। दर्शक एकदम से घटने लगे। कई अन्य तरह की दिक्कतें भी आने लगीं। लिहाजा, 1990 के आसपास गढ़वाल रामलीला परिषद ने मंचन बंद कर दिया।

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